निजी एम्बुलेंस के व्यवसायिक उपयोग पर लगे रोक। : अमरदीप यादव - एक संदेश भारत

Breaking

Post Top Ad

Post Top Ad

मंगलवार, मई 25, 2021

निजी एम्बुलेंस के व्यवसायिक उपयोग पर लगे रोक। : अमरदीप यादव

अमरदीप यादव 


हजारीबाग : एम्बुलेंस लैटिन भाषा के शब्द "एम्बुलर", अर्थात "चलना" है जो प्रारंभिक/आपातकालीन चिकित्सा सेवा है, इसका हिंदी नाम "रोगी वाहन" है। पहली बार 1487 में स्पेनिश सेना द्वारा एम्बुलेंस का उपयोग किया गया था। कालांतर में शताब्दियों तक अन्य देशों में विस्तार होते हुए उक्त सेवा का व्यापक उपयोग प्रथम विश्व युद्ध (1914-18), स्पेनिश फ्लू वैश्विक महामारी (1918-20) और द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45) के बाद भारत समेत पूरी दुनिया में होने लगा।


भारत सरकार मोटर वाहन अधिनियम, 1988-89 का अध्याय 8 यातायात नियंत्रण से संबंधित है। अधिनियम, 1988 की धारा 138 (2) (डी) राज्य सरकार को एम्बुलेंस या अन्य विशेष वाहन के नियम बनाने, पंजीकरण, निलंबन और पंजीयन रद्द करने का अधिकार देती है। अगर संचालक धारा 53 की अवहेलना करता है तो धारा 54 और 55 प्राधिकरण द्वारा वाहन के निलंबन और रद्दीकरण के बारे में हैं। और इसी अधिनियम की धारा 194(ई) में एम्बुलेंस का रास्ता रोकने वाले व्यक्ति पर 10,000 रुपये जुर्माना का प्रावधान है। 


ऐसा इसलिए क्योंकि सरकारी और सामाजिक दोनों नज़रिए में ये सेवा का माध्यम और जीवन रक्षक वाहन माना गया है। लेकिन आजकल इसी लोकविश्वास का गलत फायदा उठाते हुए कोरोना वैश्विक महामारी में ज्यादातर निजी एंबुलेंस वाले जरूरतमंदों से मनमाना किराया वसूल रहे हैं। जबकि झारखंड सरकार के स्वास्थ्य सचिव केके सोन ने 13 अप्रैल 2021 को आदेश जारी कर एम्बुलेंस का रेट (दर) तय कर दिया है।


सरकार द्वारा तय रेट (दर) के अनुसार चालक के उपयोग के लिए पीपीई किट के लिए लागत राशि 500 रुपये मात्र का भुगतान परिजन को करना है। अगर परिजन द्वारा किट स्वयं उपलब्ध करवाया जाता है तो इसके लिए राशि भुगतान नहीं करना है। सामान्य एंबुलेंस के लिए : 10 किलोमीटर तक के लिए 500 रुपये मात्र, 10 किलोमीटर से ज्यादा दूरी है तो प्रति किलोमीटर 12 रुपये ही लेना है।


एडवांस एंबुलेंस (वेंटिलेटर सहित) के लिए : 10 किलोमीटर तक के लिए 600 रुपये मात्र, वहीं 10 किलोमीटर से ज्यादा दूरी है तो प्रति किलोमीटर 14 रुपये और एंबुलेंस सैनिटाइजेशन के लिए मात्र 200 रुपये ही लेना है। ऑक्सीजन का शुल्क यात्रा भाड़ा में ही शामिल है इसका अतिरिक्त पैसा नही देना है। 


बावजूद इसके सरकारी आदेशों की अवहेलना करते हुए कुछ संचालक आपदा के व्यापारी बने हुए हैं, इसके कई बानगी है। 15 अप्रैल को हटिया निवासी अभिषेक को एक ओमनी वैन सामान्य एम्बुलेंस को सदर अस्पताल तक का 4000 रुपया देना पड़ा। 17 अप्रैल को नामकुम सिदरौल से रांची सदर हॉस्पिटल तक का विजय नामक व्यक्ति से एंबुलेंस ने 6000 रुपए लिया। रांची के रमेश लकड़ा के परिजन के शव को रिम्स से सिरमटोली कब्रिस्तान पहुचाने के लिए एम्बुलेंस ने 10 हज़ार रुपये लिये। 21 मई को एक शव को हज़ारीबाग़ से गिरिडीह ले जाने के लिए एम्बुलेंस चालक द्वारा परिजनों से पहले 15 हज़ार रुपये की मांग की गई, मोलभाव के बाद 8 हज़ार में मामला तय हुआ।


ग़नीमत है कि निजी संचालकों के मनमाने किराया को निशुल्क सरकारी एम्बुलेंस बहुत हद तक संतुलित और नियंत्रित कर रहा है। क्योंकि राज्य में 108 सरकारी एम्बुलेंस हर जगह उपलब्ध है। कोरोना काल में यह स्वास्थ्य विभाग और गरीबों के लिए वरदान बनी हुई है। भारत सरकार की महत्वकांक्षी योजना से प्राप्त राशि से नवंबर  2017 में झारखंड में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास और स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी ने 108 एम्बुलेंस सेवा की शुरुआत की थी, जिसके द्वारा अब तक राज्य के 24 जिलों में टोलफ्री नंबर कॉल पर 5 मार्च से 19 अप्रैल तक 2697 और 20 मई तक शहरी, अर्ध शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग 4 हज़ार से अधिक कोरोना मरीजों को अस्पताल पहुंचाया गया है। अभी राज्य भर में 337 फुली इक्विपमेंट्स वाली एंबुलेंस चल रही हैं, इसे पीपीई मोड में जिकित्जा केयर द्वारा चलाया जा रहा है। 


राज्य में संचालित 337 एंबुलेंस में 293 जहां बेसिक लाइफ सपोर्ट की सुविधा से लैस हैं, वहीं 40 एंबुलेंस एडवांस लाइफ सपोर्ट की सुविधा से लैस हैं। अगर हर जिलो और प्रखंडों में यह एम्बुलेंस चैन की व्यवस्था नही होती तो झारखंड में निजी और पुराने सरकारी एम्बुलेंस के भरोसे कोरोना की पहली और दूसरी लहर को नियंत्रित करना काफी कठिन होता।


इधर निजी एम्बुलेंस सेवा की बदनामी होते देख 15 मई को जमशेदपुर टीएमएच स्टैंड में एम्बुलेंस चालकों ने रफीक अहमद के नेतृत्व में अपने ही लोगों के खिलाफ धरना देकर परिजनों से अधिक किराया वसूलने का विरोध किया। लेकिन इससे किसी को प्रभाव पड़ा होगा ऐसा लगता नही है क्योंकि जो लोग सरकार के आदेश नही मान रहे वो अपने एसोसिएशन की बातों को कितना अहमियत देंगे! इसलिए राज्य सरकार को अब कड़ाई से दंडनीय प्रावधानों का उपयोग करते हुए एम्बुलेंस सेवा के व्यवसायीकरण पर रोक लगानी होगी तभी जरूरतमंदों को राहत मिलेगी।


लेखक :  अमरदीप यादव  (प्रदेश अध्यक्ष)

भारतीय जनता पार्टी (ओबीसी मोर्चा) झारखंड

Post Top Ad