सरल व निश्छल भक्ति से प्रसन्न होते हैं भगवान। - एक संदेश भारत

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बुधवार, मई 26, 2021

सरल व निश्छल भक्ति से प्रसन्न होते हैं भगवान।


एक वैष्णव आश्रम से कुछ दूरी पर एक गरीब परिवार रहता था उनके आठ बच्चे थे । इनमें से एक बच्चा बहुत मोटा ताजा और पेटू था वो एक दिन में पांच किलो राशन खाता था । उसी के भाई  बहनों ने उसका नाम पांचू रख दिया । पांचू के माता पिता बहुत परेशान थे कि अकेला इतना खा लेता है बाकी बच्चे भूखे रह जाते हैं । 

एक दिन उसके मां बाप ने मिल कर तय किया कि पांचू को वैष्णव आश्रम में छोड़ देंगें वहां आश्रम में काम करेगा और साधु संतों की सेवा करेगा । वहीं खाना खा लेगा और रहेगा भी वहीं । पांचू की मां उसे लेकर स्वामी जी के आश्रम गयी । मुख्य स्वामी जी को अपनी समस्या बतायी और अनुरोध किया कि पांचू को अपनी शरण में रख लें उससे काम करवाएं अपनी सेवा करवाएं बस उसे खाना और रहने की जगह दे दें । स्वामी जी ने सहर्ष पांचू को रख लिया । 

अब एकादशी का दिन आया  एकादशी को आश्रम में अन्न नहीं खाया जाता था फलाहार रहता था ।  जब स्वानी जी ने पांचू को फलाहार की बात कही तो पांचू फैल गया और अड़ गया उसने कहा वो दाल रोटी चावल के बिना नहीं मानेगा । स्वामी जी ने कहा अच्छा तू ऐसा कर अपना पांच किलो राशन ले ले और पास के जंगल में जाकर स्वयं खाना बना कर खा ले । लेकिन स्वामी जी ने कहा पांचू खाना बनाने के बाद खाने से पहले भगवान को भोग लगाना और कहना आओ भगवन भोग लगाओ ।

सीधा सरल पांचूं जंगल में चला गया अपना खाना अस्थायी चूल्हें पर बनाया और थाली लगा कर बोला आओ भगवन भोग लगाओ । कुछ देर इंतजार की भगवान नहीं आए तो बोला अब नहीं आना तो तुम्हारी मर्जी मुझे बहुत भूख लगी है । इतने में भगवान श्री राम आ गए । पांचू के अपने खाने में से उनको भी दिया । कई एकादशी ये सिलसिला चलता रहा । एक एकादशी को पांचू को लगा ये कौन भगवान है स्वामी जी के मेरा मेहनत से बनाया खाना आकर खा जाते हैं।

उसने मन में ठान लिया कि आज तो इस भगवान को कहूंगा कि एक तो मैं भूखा रह जाता हूं उस पर मैं अकेला ही पकाऊं । उसने आश्रम के स्वामी जी को कहा ये कौन आपके भगवान है जिनको आपने खाने से पहले बुलाने के लिए कह रखा है मेरा आधा खाना खा जाते हैं और राशन दो मेरा पांच किलो में काम नहीं चलता । स्वामी जी ने सोचा बहुत पेटू है झूठ बोल रहा है इसलिए बालक समझ कर उन्होनें राशन की मात्रा बढा दी । 

उस एकादशी को पांचू ने फिर पुकारा आओ भगवन भोग लगाओ । भगवन आ गए ,पांचू ने साफ कहा – देखो आज तुम्हारे लिए अलग से ज्यादा राशन लाया हूं । और मैं अकेला तुम्हारे लिए इतना नहीं पका सकता अगली एकादशी को मेरे साथ तुम भी खाना बनवाना ये नहीं चलेगा कि मैं अकेला ,सारी मेहनत करूं और तुम मेहमान की तरह आ कर खा पी कर चलते बनो । भगवान राम ने कहा ठीक है अगली बार तुम खाना बनाने से पहले ही मुझे बुला लेना ।  अगली एकादशी को पांचू दो लोगों का राशन लेकर जंगल में पहुंचा उसने आवाज़ लगायी- आओ भगवन खाना बनवाओ ।

देखा तो इस बार भगवान के साथ एक महिला थी । उन्होनें पांचू के साथ मिल कर खाना बनवाया । पांचू ने  खाना थाल में लगा कर कहा आओ भगवन भोग लगाओ । अब भगवन के साथ आयी महिला भी खाने के लिए बैठ गयीं । पांचू हैरान परेशान उसे अपनी चिंता पड़ गयी कि तीसरे के खाने से  वो भूखा रह जाएगा । पांचू ने पूछा अरे भगवन अब किसे साथ ले आए हो। भगवन ने कहा ये मेरी पत्नी हैं  सीता। तुम्ही ने कहा था तुम अकले खाना नहीं बना सकते । पांचू ने उस एकदाशी को किसी तरह समझौता किया ।

अगली एकादशी जब स्वामी जी उसे राशन देने लगे तो वो फिर फैल गया उसने कहा स्वामी जी एक तो पता नहीं कौन ये तुम्हारा भगवान है पहले तो अकेला आता था अब एक महिला को भी साथ लाने लगा है कहता है ये सीता माता है । स्वामी जी को लगा पांचू दिन ब दिन और पेटू होता जा रहा है  ज्यादा राशन लेने के लिए झूठी कहानियां गढ़ता रहता है । स्वामी जी दयालु थे  उन्होनें पांचू को और ज्यादा राशन दे दिया । 

लेकिन उन्होनें सोचा आज इस पांचू को मौके पर पकड़ूंगा । वो पांचू का पीछा करते हुए जंगल में पहुंच गए । एक बड़े पेड के पीछे छुप कर खड़े हो गए । उन्होनें देखा पांचू ने  ईंट पत्थर से चूल्हा बनाया राशन निकाला और आवाज लगायी आओ भगवन  खाना बनवाओ । भगवन सीता  जी के साथ आए , सीता जी ने रसोई बनायी तीनों ने मिल कर खायी । स्वामी जी को विश्वास ही नहीं हुआ कि ये पांचू जिसे खाने के अलावा और कुछ नहीं सूझता ।  ध्यान पूजा  पाठ कुछ करता नहीं इसको माता सीता अपने हाथ से खाना बना कर खिलाती हैं । एक मैं जिसने घर बार संसार त्याग दिया कठोर तप किया मुझे आज तक भगवन ने कभी दर्शन नहीं दिए।

स्वामी जी पेड़ की आड़ृ से निकल कर भगवान राम और सीता जी के चरणों में गिर पड़े उनकी आंखों से आंसुओं की धार बह रही थी । भगवान आज मैं धन्य हुआ इस पेटू पांचू के कारण आज आपके साक्षात दर्शन हो गए । मेरा जीवन धन्य हुआ मेरी तपस्या सफल हुई । लेकिन भगवन ये बताओ कि ये पांचू तो कोई श्लोक, कोई पूजा पाठ नहीं जानता फिर आप इसके कहने पर कैसे आ जाते हो । भगवन बोले स्वामी जी मैं सरल भक्ति से बहुत प्र्सन्न होता हूं। आडंबर मुझे भाता नहीं है।  अब आपने पांचू को कहा कि जब भोजन बन जाए तो भगवान को बुला कर उनको भोग लगा कर ही खाना । इस पांचू ने पहली एकदाशी को ही मेरा मन जीत लिया । मुझे पता है कि इसे कुछ नहीं पता कौन भगवान क्या भक्ति इसने केवल आपकी आज्ञा का पालन किया वो भी पूरे मन के साथ । थाली लगा कर इसने मुझे बुलाया । इसने समझा था भगवान नाम का कोई आदमी होगा जिसे आप भेजेंगें और थोड़ा बहुत  खा कर चला जाएगा । इसने पूरे मन से मुझे पुकारा मैं आया । 

इसको पता ही नहीं मैं कौन हूं इसने मेरा साथ बिल्कुव बराबरी की बात की और कहा देख सारा मत खा जाना तुझे इसलिए बुलाया है कि आश्रम के स्वामी जी ने कहा था। हर एकादशी मेरा और इसका खाने का साथ हो गया। एक दिन ये गुस्सा भी हुआ कि ये नहीं चलेगा एक आदमी का राशन दो लोग नहीं खा सकते। मैं इसकी सरलता और जिस तरह से ये मुझसे बिना लाग लपेट के झगड़ा करता था उसमें मुझे भी बहुत आनंद आता था। इसे मेरी आलौकिक शक्तियों का न तो कोई ज्ञान था और न ही इसे पता था कि मैं आराध्य हूं । इसके निश्चल और सरल मन ने मेरा दिल जीता । मुझे भी इस पर स्नेह आता  था ।

स्वामी जी ने भगवान से अपने तप के अंहकार की क्षमा मांगी और कहा आज पांचू ने मुझे नयी राह दिखायी मेरी आंखे खोल दीं और आपके दर्शन भी करवा दिए।

स्रोत :  श्रीमती सर्जना शर्मा जी (वरिष्ठ पत्रकार व सह संपादक सन्मार्ग ) के फेसबुक पोस्ट से।


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