स्वामी रामदेव राष्ट्र को समर्पित एक सन्यासी योद्धा। - एक संदेश भारत

Breaking

Post Top Ad

Post Top Ad

मंगलवार, जून 01, 2021

स्वामी रामदेव राष्ट्र को समर्पित एक सन्यासी योद्धा।

स्वामी रामदेव व उनके सहयोगी आचार्य बाल कृष्ण 

स्वामी रामदेव कई बार आम बोलचाल के भाषा में देशहित के लिए जरुरी बातें बोल जाते हैं, यह सत्य है। क्योंकि जिस तरह से देशविरोधी ताकतों का एक लॉबी जो विदेशी कंपनियों के पैकेज से काम करती है, उनके पीछे शुरुवाती दौर से हीं पड़ी रहती है। उसके विरुद्ध स्वामी जी का मुखर होना मजबूरी बन जाती है। चुकीं जबतक शांत रहा जाता है तो यही वामपंथी विचार के लोग झूठ बोल-बोल कर देश भर में भारतीय संस्कृति व सभ्यता के विरोध में तगड़ा माहौल बनाते हैं और भारतीय विचारों के वाहकों को नीचा व पिछड़ा दिखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं। इसलिए स्वामी रामदेव जैसे सनातन संस्कृति के धवज वाहकों को प्रतिक्रिया देना जरुरी जाता है। जिसमे कुछ बातें ऐसी भी हैं जो निश्चित ही मील का पत्थर साबित हुई हैं।

आप सब विचार करें की भारत के आजादी से पूर्व स्वदेशी आंदोलन शुरू हुवा जिससे हम भारत को स्वतंत्र करने में सफल हुवे। यहां गौर करने वाली बात यह है की सैकड़ों साल से स्वदेशी-स्वदेशी चिल्लाते रहे, और भारत के स्वतंत्रता के बावजूद हमारे पास विकल्प नहीं थे या बेहद कम थे। और जो थे भी वह उदासीन थे, किसी ने भी आगे आकर भारत के खिलाफ विदेशी कंपनियों के षड्यंत्रों पर कभी कुछ बोलना मुनासिब नहीं समझे। अच्छा खराब अलग विषय है, और इसकी जाँच हमने कभी भी विदेशी कम्पनियों में नहीं किया। बाबा ने हमे धीरे धीरे स्वदेशी उत्पादों की एक श्रृंखला दी है, विकल्प दिया है कि हम बिना हिचक स्वदेशी उत्पाद चुन सकें। स्वदेशी के गीत गाने वाले अनेक संगठन आज तक ऐसा नहीं कर पाए थे। परन्तु स्वामी जी ने देशवासीयों के कमजोरी को समझा उनकी जरूरतों पर पहल किया घर-घर सनातन संस्कृति के आधारस्तम्भ योग को पहुँचाया और विदेशी कंपनियों के षड्यंत्रों पर खुल कर बोलना शुरू किया। लोगों को समझाया की किस प्रकार विदेशी कंपनी हमें खोखला कर रहें हैं और फिर से भारत को गुलाम बनाने की सडयंत्र रच रहे हैं।


परम्परागत वैद्य दवाइयों को कूट पीस कर पुड़िया बना कर देते थे जिसमें क्या है, किसी को कुछ पता नहीं होता था। साथ ही उनका ज्ञान सदैव सीमित लोगों तक पहुंचा और प्रायः वो अगली पीढ़ी तक अपना ज्ञान अग्रसारित नहीं कर सके। जबकि बाबा ने उसको आधुनिकीकरण और मशीनों के द्वारा टैबलेट का रूप दिया है, जिसकी उपलब्धता सहज और खाना आसान हुआ है।

स्वामी जी के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने एक औषधीय वनस्पतियों का संकलन तैयार किया है जिसमे 6,000 से अधिक आयुर्वेदिक औषधियों का सचित्र विवरण उपलब्ध है। जो आयुर्वेद के लिए अपने आप मे एक बड़ा योगदान है।

गुरुकुल परम्परा को पुनरुज्जीवित करने और वेद सांख्य दर्शन के साथ साथ योग आयुर्वेद में निष्णात लाखों योगी तैयार करने का भागीरथ कार्य प्रारम्भ किया है, जो की अपने आप मे अद्वितीय है। और इसे सोचा बहुतों ने लेकिन कर कोई नहीं पाया बड़े स्तर पर। इसका परिणाम आने वाले वर्षों में दिखेगा।

आयुर्वेद को आधुनिक चिकित्साशास्त्र के साथ खड़ा करने के लिए आधुनिक परीक्षण शाला बनाए, जिसमे अहर्निश अनुसंधान कार्य चलते हैं, डेटा एकत्र किए जाते हैं और नवीन औषधियों के सूत्र खोजे जाते हैं।

आज एलोपैथी में जहाँ हम कम से कम 500-1000 तक फीस देकर डॉक्टर को दिखाते हैं वहीं पतञ्जलि ने लाखों डॉक्टर बिना शुल्क उपलब्ध कराए हैं जो पतञ्जलि से इतर भी दवाएँ लिखते हैं।

योग-आसन और प्राणायाम को सहज रूप में प्रस्तुत कर घर घर पहुँचाया ही नहीं वरन वैश्विक प्रसिद्धि भी बढ़ाया है, जिससे कोई अनभिज्ञ नहीं है। स्वदेशी व्यापार का बड़ा मॉडल खड़ा कर के दिखा दिया है कि केवल मठों में दण्ड पेलने और दान के राशन से पेट भरने और चाँदी के सिंहासन पर बैठने भर से समाज का उत्थान नहीं होगा। समाज के बीच उतर कर राष्ट्रवाद, स्वास्थ्य और स्वदेशी की भावना लोगों में जगाने का बीड़ा स्वयं उठाने से देश समाज में परिवर्तन आएगा। और वो कर दिखाया है इसमें कोई संशय नहीं है। बाबा स्वामी रामदेव आज भी एक लँगोटी और भगवा वस्त्र में भूमि शयन करते हैं। उनके नैतिक जीवन की शुचिता पर कोई दाग नहीं है, जो कि धन और वैभव मिलते ही प्रायः बड़े बड़े तथाकथित सन्यासी भूल जाते हैं।

दिल्ली के मैदान से आधी रात सन्यासियों को पीट कर भगाए जाने के बाद बाबा का प्रण था कि जब तक काँग्रेस का नाश न कर लूँगा हरिद्वार नहीं लौटूँगा। और चाणक्य की भाँति वो प्रण पूरा करने के लिये पूरे देश मे लाखों किलोमीटर की यात्रा की, हजारों सभाएँ की और काँग्रेस को सत्ता से जाना पड़ा। ये बाबा की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचायक है।
अब पुरे देशभर में एक जंग से छिड़ी हुवी है की स्वामी रामदेव एलॉपथी चिकित्सा पद्धति के विरुद्ध कैसे सवाल खड़े कर सकते हैं, अब ऐसे में तो यही सवाल है की आखिर किसी चिकित्सा पद्धति पर प्रश्न क्यों नहीं उठना चाहिए। यह लड़ाई किसी पैथी या विधा से नहीं है। सब का अपना अपना महत्व है, परन्तु षड़यंत्र पूर्वक विदेशी शक्तिओं के हाथों कठपुतली बनकर एक लॉबी बना कर किसी पैथी (आयुर्वेद ) को जबरन हतोत्साहित करना या दबाना भी ठीक नहीं है जो कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) करना चाहती है।

वह IMA जिसके साथ देशभर के मात्र ३.५ लाख डॉक्टर जुड़े हुवे हैं जबकि देशभर में १० लाख से अधिक एलोपैथिक डॉक्टर्स हैं, यह एक गैरसरकारी संगठन है, इसके वर्तमान मुखिया इस कोरोना महामारी को ईसाई समाज के लिए अपने मजहब के प्रचार और लोगों को धर्मांतरित करने के लिए एक बड़ा अवसर के रूप में देखते हैं। इसी संगठन के एक और अधिकारी देश के वर्तमान प्रधानमंत्री को सबसे बड़ा कोविड स्प्रेडर ( संक्रमण फ़ैलाने वाला) मानते हैं। अब जो संगठन 1928 में बना है और जिसके विचार हीं सनातन संस्कृति के विरोध में हो उसकी कार्यशैली की जाँच वर्तमान सरकार को क्यों नहीं करनी चाहिए।

Post Top Ad